10000 का ग़पला – एक हास्य हिंदी कहानी


10000 का ग़पला – एक हास्य हिंदी कहानी




गाँव सोंधापुर में रामू नाम का एक चालाक मगर बेहद आलसी आदमी रहता था। दिन भर कुछ न कुछ जुगाड़ सोचता रहता कि बिना मेहनत किए कैसे अमीर बन जाए।

एक दिन उसने सोचा, "क्यों न एक बड़ा ग़पला कर लिया जाए। बस एक बार 10000 रुपये हाथ लग जाएं, फिर मैं जिंदगी में आराम से जीऊँगा।"

अब सवाल ये था कि ये पैसे आएंगे कहाँ से?

रामू ने गाँव के मुखिया से कहा, "मुखियाजी, मैंने एक अनोखा देसी जुगाड़ तैयार किया है – बिजली बिना बैटरी वाला पंखा!"

मुखिया ने चौंककर पूछा, "बिना बिजली, बिना बैटरी, फिर कैसे चलेगा?"

रामू ने बड़ी गंभीरता से कहा, "गाँव की हवा से!"

मुखिया तो थोड़ा भोला था, सोचने लगा – "वाह! अगर ये सही में हो गया तो हमारा गाँव तो दुनिया भर में मशहूर हो जाएगा।"

रामू ने कहा, "लेकिन मुखियाजी, रिसर्च और पंखा बनाने में ₹10000 का खर्चा आएगा। आप पंचायत फंड से दे दीजिए। अगले महीने तक पंखा हवा में उड़ता मिलेगा!"

मुखिया ने गाँव की बैठक बुलाई और सबको समझाया। कुछ लोग हँसे, कुछ ने कहा, "दे ही दो, देख ही लेंगे।"

पैसे रामू के हाथ में आ गए। पहले ही दिन उसने ₹2000 में नए कपड़े खरीदे, ₹3000 में अपने दोस्तों को पार्टी दी, और बाकी ₹5000 से गाँव के बाहर बकरी खरीद ली – ताकि दूध बेच सके।

एक महीना बीत गया। पंखा तो दूर, गाँव में रामू ही गायब हो गया!

लोगों ने मुखिया से पूछा, "पंखा कहाँ है?"

मुखिया ने रामू को ढूँढा। वह खेत में बकरी चरा रहा था।

मुखिया ने गुस्से से कहा, "रामू! तूने ग़पला कर लिया!"

रामू मुस्कुराया और बोला, "अरे मुखियाजी, वो पंखा तो बन गया, लेकिन हवा इतनी तेज़ थी कि उड़ गया!"

मुखिया – 😐

सीख:
गाँव की हवा से पंखा चलाना आसान नहीं, और आलसी से जुड़कर पैसा लगाना तो बिलकुल भी नहीं।


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